Saturday, October 15, 2016

तेरे हुस्न की तारीफ मेरी शायरी के बस की नहीं,

तेरे हुस्न की तारीफ मेरी शायरी के बस की नहीं,
तुझ जैसी कोई और कायनात में ही नहीं बनी,
तेरा मुस्कुराना देना जैसे पतझड़ में बहार हो जाये,
जो तुझे देख ले वो तेरे हुस्न में ही खो जाये,
आंखे तेरी जैसी समन्दर हो शराब का,
पी के झूमता रहे कोई नशा तेरे शबाब का,
होंथ तेरे गुलाब के फूल से भी कोमल है,
चूमते वक्त कहीं खरोच ना लग जाये दिल में बस मेरे ये ही डर रहे,
तेरे जिस्म की बनावट संगमरमर की मूरत से कम नहीं,
तुझे देख लूं जी भर के फिर मरने का भी गम नहीं,
तेरी जुबान से निकले जो बोल तो मानों कोयल भी शरमा जाये,
तू जो अपने जुबान से मर जाने को कहे,
तो मरने वाले को भी मरने का मजा आ जाये,
मैं अदना सा एक शायर तेरे हुस्न की और क्या तरीफ करूं,
मैं तेरे लिए ही जीता हूं और रब करे तेरे लिए ही मरूं।।

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