एक ग़ज़ल तेरे लिए ज़रूर लिखूंगा,
बे-हिसाब उस में तेरा कसूर लिखूंगा,
टूट गए बचपन के तेरे सारे खिलौने,
अब दिलों से खेलना तेरा दस्तूर लिखूंगा।
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Friday, February 16, 2018
Tuesday, February 13, 2018
रूठे हुए अपनों को मना लूंगा एक दिन,
रूठे हुए अपनों को मना लूंगा एक दिन,
दिल का घर फिर से बसा लूंगा एक दिन,
लगने लगे जहाँ से हर मंज़र मेरा मुझे,
ख़्वाबों का वो जहान बना लूंगा एक दिन,
अभी तो शुरुआत हुई है इस सफ़र की,
बेरंग ज़िन्दगी में रंग सजा लूंगा एक दिन।।
दिल का घर फिर से बसा लूंगा एक दिन,
लगने लगे जहाँ से हर मंज़र मेरा मुझे,
ख़्वाबों का वो जहान बना लूंगा एक दिन,
अभी तो शुरुआत हुई है इस सफ़र की,
बेरंग ज़िन्दगी में रंग सजा लूंगा एक दिन।।
बिखर रही है मेरी जात उससे कहना,
बिखर रही है मेरी जात उससे कहना,
कभी मिले तो यही बात उससे कहना,
वो साथ थी तो जमाना था हमसफ़र मेरा,
मगर अब कोई नहीं मेरे साथ उससे कहना,
उससे कहना की बिन उसके दिन नहीं कटता,
सिसक सिसक के कटती है रात उससे कहना,
उसे पुकारू की खुद ही चला जाऊ उसके पास,
नहीं रह सकता बिन उसके अब उससे कहना,
अगर वो ना आ पाए मेरे पास तो ऐ मेहरबान,
मेरे दिल के हालात उससे कहना,
हर सांस उसके नाम कर रहा हूँ अब मै,
मै तड़प रहा हूँ उसके बिन ये उससे कहना।।
कभी मिले तो यही बात उससे कहना,
वो साथ थी तो जमाना था हमसफ़र मेरा,
मगर अब कोई नहीं मेरे साथ उससे कहना,
उससे कहना की बिन उसके दिन नहीं कटता,
सिसक सिसक के कटती है रात उससे कहना,
उसे पुकारू की खुद ही चला जाऊ उसके पास,
नहीं रह सकता बिन उसके अब उससे कहना,
अगर वो ना आ पाए मेरे पास तो ऐ मेहरबान,
मेरे दिल के हालात उससे कहना,
हर सांस उसके नाम कर रहा हूँ अब मै,
मै तड़प रहा हूँ उसके बिन ये उससे कहना।।
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