Sunday, October 21, 2018

तेरे शहर में आ कर बेनाम से हो गए,

तेरे शहर में आ कर बेनाम से हो गए,
तेरी चाहत में अपनी मुस्कान ही खो गए,
जो डूबे तेरी मोहब्बत में तो ऐसे डूबे,
कि तेरी आशिक़ी के गुलाम ही हो गए।

आरजू तमाम पिघलने लगी हैं,

आरजू तमाम पिघलने लगी हैं,
लो और एक शाम फिर से ढलने लगी है,
हसरत-ए-मुलाकात का शौक है बस,
ये ज़िद भी तो हद से गुजरने लगी है।।

नजर से क्यूँ जलाते हो आग चाहत की,

नजर से क्यूँ जलाते हो आग चाहत की,
जलाकर क्यूँ बुझाते हो आग चाहत की,
सर्द रातों में भी तपन का एहसास रहे,
हवा देकर बढ़ाते हो आग चाहत की।

Thursday, October 4, 2018

न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,

न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,
न तारीफ तेरी, न मजाक मेरा होगा।
गुरुर न कर शाह-ए-शरीर का,
मेरा भी खाक होगा, तेरा भी खाक होगा।।