Wednesday, May 11, 2016

हम रात भर समेटते रहे टुकड़े दिल के।

हम रात भर समेटते रहे टुकड़े दिल के।
कल कोई तोड़ गया था यू गैरों से मिल के।
पूछ ही ना पाये उनसे सबब बेरुखी का।
रह गये खामोश अपने लवों को सिल के।।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.